जिया-जूण हुवै
सिकती रोटी दांई
पिसीजै
गूंधीजै
बंटीजै
अर सिकै है
होळै-होळै.
सिकते-सिकते
बळ ई सके
कांई जेज लागै.
इण सारू
सावचेत हु’र
उथळता रया
बेगी सीक
जिया जूण सी
रोटी नै !
- विकास का पुल लील गया थार का प्रवेश द्वार - 40 साल पहले हुआ था चौक का नामकरण इतिहास लिखने के लिए अलग कलम नहीं होती, उसे तो सिर्फ घटनाएं...
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