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बात बैठी कोनी !

(राजस्थानी कहाणी)
 -डाॅ. हरिमोहन सारस्वत ‘रूंख


बात ! बात कींरी गुलाम थोड़ी होवै. बैठै तो बैठै, नीं पछै तरळा कर बोकरो, बिगड़ी अर बिगड़ी. बात अर तींवण मांय फरक कित्तोक. बिगड़ेडो तींवण बटाऊ साम्ही सरमा मारै तो बिगड़ेडी बात भरयै चौगान. पण बात तो बात है. करयां बिना कद सरै. तो पछै आपां ई बात सरू करां दिखाण, बैठै ई तो !

रेल्वे फाटक रै सारै ध्याड़ी मजूरां रो अड्डो. केवण नै तो आजाद चौक बजै पण आजादी न्याड़-नैड़ास ई नीं दीसै. सगळा पेट री दोजख रा गुलाम. ध्याड़िया भोराभोर ई अठै आय’र उभा रैवै. साथै ल्यावै भांत- भंतीला टिपण अर न्यातणा मांय बंधेड़ी रोटयां. आं रै सारू रोटी सैं सूं मोटो खजानो है जिण नै सोधतां थकां जियाजूण रो बींटो ई कांई ठाह कद गोळ हो जावै ! इण सूं डरता कैई चलताऊ मिस्त्री, जिका गोळा ठोकै अर जिकां नै बेगो सोक कोई काम पर नीं राखै, बेई आपरो डोळ लियां अड्डै पूगै. सगळा काम नै उडीकै. अड्डै रै मजूरियै नै तो कोई बांरै डोळ सारू ई काम देवै. घणकरा मजूरिया रोटी सूं बेस्सी पोस्त अर जरदो ठोकै जिका मूतण नै ढुकै तो गई आधी घण्टै री. मिस्त्री उडीक बोकरो मसालै नै. पण जद तांई बांरो मसालो नीं बणै, काम री चाल किंया बण सकै ! पछै थेई बताओ इस्यै नसेड़यां नै काम कुण देवै. ईं मूंगीवाड़ै मांय काम लाधै ई कठै. अर जे है कठई, बठै पैली सूं ई ठेकेदारां रा परमानेण्ट मजुरिया आपरी खाल कुटावै.

आजाद चौरायै पर ज्यूं ई कोई मोटरसाईकिल, स्कूटर का बाईसिकल आ’र ठमै छिड़्योड़ी माख्यां दांई लगैटगै सगळा दिहाड़िया बिन्नै घेर लेवै. कदे-कदे तो आवणियो बापड़ो सैंतरो बैंतरो होयोड़ो बांरी साम्ही झांक बो’करै. जबरा फस्या ! 

‘के काम है भाई जी.... कित्ता जणा चइजै......असी चलदे हां.........ओ बांह छड्ड यार, भाजी मैं चलां......‘  

मै.. मैं.. मैं... कई इण मै मैं सूं आ सोच अलघा उभा रेवै कै जे कोई नै गरज हुसी तो आपई बतळा लेसी. नीं पछै अठै किसी व्हेजी सूकै ! पण तरळा तो करणा ई पड़ै इण बात रै साथै ई रोळो रप्पो इत्तो बधै कै आवणियै री बात सुणीजै ई कोनी. नौ बजते-बजते ओ मजमो खिण्डणै लागै. कईयां नै ध्याड़ी लाधै तो कईयां नै सागी पगां पाछा खुरड़ा रगड़ना पड़ै. कई बारा बज्यां तांई उडीक बोकरै. कठई पार पड़ैई तो, कांई ठाह आधी ध्याड़ी ई मिलै तो !

तो बात आगै बधावां. चुनाव रा दिन. बेलै आदमी नै ई ओसाण कोनी. सगळा   धिंगाणै ई काम लाग्योड़ा. मजूरियां रै अड्डै पर ई सुन्याड़ बापर्योड़ी. ना सरस्यूं, ना कणक री कटाई. पछै बेटा, मजूरिया गया कठै ! लोकराज रै उच्छब मांय आजकलै बै दिहाड़ी सट्टै भीड़ बधावण रो काम करै. नारा लगावण रा दस न्यारा मिलै. न्हा-धो’र आखै दिन टैंट री छींया बैठणो. मोटोड़ै नेताजी रै आंवताई जैकारा लगाणा. भासणां बिच्चाळै पांच बिरियां ताळी बजाणी. बस, दिहाड़ी खरी ! कदी कदी तो इसी ताबै लागै कै एक दिन मांय दो-दो जिग्यां ताळी बजाणै रो मौको मिल जावै. बीं दिन दिहाड़ी तो डबल मिलै ई केसर कस्तूरी री थेल्यां बंटै जिक्की न्यारी.

 धन्न है चुनाव नै ! पण बेटो ओ ई पांच बरस बीत्यां झाकी घालै. बा ई फगत दस-पन्द्रा दिन. बेटी रा बापो, जे आए चौमासै चुनाव कराल्यो तो ठीक कोनी के !

काम जबरो है भई, बिना खाल कुटायां रूपली मिलै, और पछै चाइजै ई के ! मतलब तो पइसां स्यूं है. आज री घड़ी पईसा चुल्हो जगावै. परात तंई आटो पुगावै. देगची मांय तड़का लगावै. सौ बातां री अेक बात पइसा घर चलावै......  

........................

‘बस इत्ता घणाई है.’ 

‘घणा किंयां है भाईजी ? बात तो दो सौ रिपियां री होई ही.’

‘हां.......हां, बात तो दो-दो सौ री ही. कई मरयोड़ा सा सुर भेळा उठ्या.’

‘अरे भाइड़ो, बात तो ही, पण बैठी ही कोनी. पईसा तो बात रा ई मिलै. मंतरी जी आया ई कोनी. पण तोई थान्नै तो कीं देंवां ई हां. फेर कदेई सई. विधायक जी रो कारीगर आदमी मुरली आपरै सुर मांय की बेस्सी मिठास घोळ’र बोल्यो.

‘भाईजी, बात बैठी का नीं, पण म्हे तो दिनुगै नौ बज्यां रा बैठ्या हां. बेई भूखा तिस्सा. तीन बजण नै आया है. थेई बताओ ठाली सौ रिपिड़ा सूं कांई बणै ?’  मंगळै मींट की करड़ी करी.

‘बीस रिपियां री थेली आवै भाईड़ा. पियां पछै अेकर तो भूख तिस्स ई नैडै़ कोनी आवै.’

थोड़ी दूर खड़ी जीप री लारली सीट माथै पळगोड सो पसरयो धोळै कुड़तियै आळो अेक चैधरी मुळक’र बोल्यो.

‘मजाक ना करो भाईजी...’ इत्तै तामझाम मांय जद पइसा लाग्या है तो पछै म्हारली दिहाड़ी पर रोवो क्यूं ?’ 

अरे राजा, पइसा थारै सूं चोखा है के. पण करां के, जे मंतरीजी आ जांवता तो सारी बात बैठेड़ी ही. अब सगळी चट्टी म्हारै ई पांति आ पड़ी. कीं तो यार, लिहाज करो. थारो हक राख’र म्हे कठै जिस्यां ? मुरली फेरूं लपोसा लगाया. कदास पार पड़ै ई तो. पण मजूर कद मानै. फेर अठै तो मजूरां रो टोळो, इत्ती भीड़ जे अबोली ई खड़ी रेवै तो ई अपरोगी लागै. 

‘अेकर-अेकर ठीक है, देवै जित्ता राखो, मंतरीजी री आगली मीटिंग मांय ओजूं कडा देस्यां’ धोळो कुड़तियो जीप सूं नीचै उतर’र बोल्यो.

‘भाईजी, बा ओज्यूं कदेई को आवै नीं.’ मंगळै तानो मारयो.

साब, पइसा तो थान्नै पूरा ई देवणा पड़सी...’ मजूरियां रो नेतो रामेसर आपरी हुंसियारी बताई. .

‘हांं, हां, बात होयोड़ी है... मजाक ना करो’ मजूरियां रोळो घालण री मरयोड़ी सी कोसिस करी.

‘गैलो, मजाक तो थे कर रया हो. बिनां काम करे पइसा मिल रया है, ओ थोड़ो है.’ धोळै कुड़तियै आपरी चतराई बताई. पण मजूर क्यांरा मानै. 

अर मान्नै ई क्यूं ! बो माधियो मुरली, जक्को कई ताळ रो पइसा लियां उभ्यो है, दिनुगै पैली अड्डै पर आ’र दो सौ रिपियां सट्टै एक सौ आठ  मजूरियां री बात कर’र गयो हो. रामेसर अर मंगळै जांवतै नै पूरै पइसां सारू टणकायो भी हो. पण उण घड़ी भाइड़ो, मंतरी जी रै आवणै सूं घणो मोदाइजेड़ो हो. एक सौ आठ मजूरां री दो सौ रिपियां सट्टै ल्यायोड़ी भीड़ रो कांई भार ! नौ बजे टैंट पूगण रो हेलो दे’र भाइड़ो तो बो जावै बो जावै. बिंयां ओ आदमी रामेसर अर मंगळै रो अेक दो बिरियां परखेड़ो हो, जिण सूं चिंता जेड़ी कोई बात ई को ही नी. रामेसर रै तो अेकर अड़ी मांय आडो ई आयोडो है जिण सूं बो थोड़ो घणो दबै ई है. पण उण बात सूं दूजै मजूरियां अर मंगळै नै कांई लेणो देणो !

‘चलो, इंया करल्यो. बीस और बधाया. एक सौ बीस हुग्या, अब ना बोल्या.’ मुरली बात बिगड़ती देख चतराई दिखाई.

‘ना भई, बीस ई क्यूं बधावै. अे सगळा ई लेज्या. म्हे सोच लेस्यां आज ध्याड़ी मिली ई कोनी! ‘ एक डैणियो मजूर थूक उछाळतो बोल्यो.

‘रामेसर, आन्नै समझावै नीं यार, इंया के करो, रळायां हाथ धुपै.’ मुरली मंजेड़ै दलाल ज्यूं फेरूं मोलभाव री रागळी करी अर धींगाणै एक सौ आठ मजूरियां रा एक सौ बीस रै भाव सूं पइसा फळा’र रामेसर नै झलाया. 

भाईजी, धींगाणो ना करो. मजूरिया आगै सारू फेर आवैगा कोनी ! रामेसर आपरी अणबस्सी बताई.

‘कोई नीं, फेर देखस्यां, अेकर तो सलटाओ.’ मुरली आपरो कुड़तियो झड़कायो जाणै रेत झाड़ी हुवै.

‘मुरलीजी, ओ मुरलीजी, भाग’र आओ, बेगा साक.’ आ आवाज जीप सारै उभ्यै धोळै कुड़तियै री ही. 

‘हैलो..........हैलो, हां साब,.............अरे, मारया गया नीं................कोई बात नीं साब......................जी हुकुम...........................जी...............................आज आळी सी नीं हुवै..................कित्ता बजे.....ठीक सर..................हां, हां, दस बजे..................अच्छा साब.’ मोबाइल गाड़ी री सीट पर पटक’र मुरली लाम्बी सांस ली. 

‘के समचार है ?’

‘रोल्यो, आं री मां नै. मंतरीजी रो दौरो काल सुबै दस बज्यां रो फेर तै हुग्यो है.’ खा लिया भै...’ मुरली धौळै कुड़तियै साम्ही मूण्डो करतां कोझी सीक गाळ काढी.

‘अरै, तो फेर आं बापां नै तो ढाब किंया ई, नीं पछै विधायकजी आपणी चोतै कर देसी.’ धौळो कुड़तियो बोल्यो.

मुरली जीप सूं उतर’र पाछो भाज’र मजूरां रै झुण्ड मांय पूग्यो जठै बै सगळा रामेसर री मां-भैण अेक कर राखी ही. 

‘अरे, सुणो भई, थारा भाग जोर मारै. मंतरीजी री सभा काल सुबै फेर तै होगी है. थारी काल री ध्याड़ी और पक्की हुगी’ अब तो राजी हो.’ मुरली सगळां नै परचांवतां थकां कयो.

‘काल कण देखी है, टोटा तो आज आळी मांय पड़ रया है.’ कणी खीरा उछाल्या.

‘ना, भई, कोई और अड्डो तका ले. अठलो तो अेक ई को जावै नीं थारी मीटिंग मांय.’ मंगळै चिट्टो उत्तर दियो. सगळै मजूरियां मंगळै री बात पर हंकारो दियो.

बात बिगड़ती देख मुरली घबरायो. चुनावां री टैम विधायक जी नै सिर कींया गिणास्यां. हेठी हुसी. आदमी साळा लाधै कठै है. बण फट स्याणप दिखाई कै किंयां ई बात बैठै. आपरी जेब सूं एक सौ आठ जणा रा बच्योड़ा अस्सी-अस्सी रिपिया फळा’र रामेसर नै झला दिया.

‘अब तो जी सोरो है.’

‘पैली दे देंवता, तो अळबाद नीं होंवती.’ दो मजूरिया मुळक’र बोल्या.

‘अबै, दिनुगै नौ बजे पूग जाया. बिंया थे सगळा भरोसै रा आदमी हो पण चूक्या नां.’ मुरली बान्नै पक्को करतां बोल्यो.

‘भाईजी, फेर थे कीं एडवांस दे’र जावो सब नै. चुनावां रो टैम है. कांय ठाह कद कोई हेलो कर लेवै.’ मंगळै आपरी हुंसियारी बताई. 

‘हां, हां, क्यूं कोनी. पण थे लेट ना करया. दो सौ रिपिया ध्याड़ी मिलसी जिण मांय सूं अे पचास अेडवांस.’ मुरली आपरै हैण्ड बैग सूं पचास रै नोट री अेक गडड्ी काढ’र मंगळै नै झलाई. 

‘ठीक है, चेतै राख्या सुबै नौ बजे,’ मुरली जांवतै-जांवतै फेरूं टणकायो.

‘चिंता ई ना करो.’ मंगळै साम्ही सूं ठरकाई.

........................

सुबै नौ बजे !

आजाद चौक अड्डै पर सरणाटो बाजै. कोई मजूर नीं. अेक कार आ ठमी. कार सूं मुरली खातो सोक नीचै उतरयो. इन्नै-बिन्नै तकायो. फेर मोबाइल पर बात करण लाग्यो. चाणचकै साम्ही चा आळै खोखै पर बीड़ी रा सूट्टा सारतो मंगळो दिस्यो तो भाज’र उण खन्नै आयो.

‘अरे, के बात भई, लेट हो रया हो नीं, कोई को पूग्यो नीं अजै तंई.’ मुरली रीसां मांय बोल्यो. 

‘पूगण आळा तो पूगग्या भाइजी, थे लेट होग्या.’ मंगळै मुण्डै सूं बीड़ी रो लाम्बो सुट्टो मार’र धुंओ सिगरेट दांई छोडयो.

‘के मतलब ?’ मुरली री सांस अटकगी.

‘बात तो कीं कोनी, थारै जांवतां ई दूजी पारटी आळा आग्या. बै सगळै मजूरां नै ढाई सौ रिपिया ध्याड़ी सट्टै बुक कर लियो. आधा पइसा ई अेडवांस. अड्डै सूं साढे आठ ई गाडयां चढ़ा’र लेग्या है बान्नै. ओ साम्हो थारो एडवांस.’ मंगळै जेब सूं काड’र कालआळी गड्डी मुरली नै झलाय दी. 

‘पण आपणी तो बात होयोड़ी ही, साळो, अबै सागी टैम किस्यै कुवै मांय पडूं.’ मुरली रा तो होस ई उडग्या.

‘बात तो ही भाई जी, पण बैठी कोनी ! फेर कदेई सई.’ मंगळै कान मांय खुसेड़ी दूजी बीड़ी सिलगा’र उथळो दियो.  

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