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दर्द की दुकान

(कहानी)

दर्द जैसा दर्द. दुकान जैसी दुकान. ग्राहक जैसे ग्राहक. दुकानदार जैसा दुकानदार..
-क्यों भाई दर्द खरीदते हो या बेचते हो ?
-कोई खरीददार हो तो बेच देता हूं. किसी के बिकवाली हो तो खरीद भी लेता हूं.
- अच्छा...... वैसे दर्द का भाव क्या है आजकल ?
- काहे का भाव जनाब, बहुत मंदा है. इन दिनों लोग मशीन बनते जा रहे हैं.
- कमाल है, मंदे का असर यहां भी है !
- मंदी कहां नहीं है हुजूर, दर्द कोई अछूता तो है नहीं. आपको क्या करना है ?
- मैं तो बेचना चाहता हूं.
- दर्द दिखाओ.
- पहले यकीन तो कर लूं कि तुम वाकई खरीददार हो.
- मर्जी है आपकी.
- अच्छा ये बताओ दर्द का मोल कैसे चुकाओगे ?
- दर्द से
-क्या मतलब ?
- काहे का मतलब ! दर्द के बदले दर्द ले जाओ.
- तो तुम्हें क्या फायदा हुआ ?
- दर्द दुनिया की सबसे रईस अमीरी है जनाब. आप दुनियादार आदमी हो. नफे-नुकसान की बात करते हो. अभी इस रईसी को नहीं समझ पाओगे.
- हें हें, आपका मतलब है जिसके पास दर्द है, वह अमीर है ?
- यकीनन, बाकी तो वही जानें. आप तो अपनी सोचो.
- अच्छा कोई झूठा दर्द बेच जाए तो ?
- मैंने कहा ना, आप अभी दुनियादारी में उलझे हो. दर्द के धंधे में झूठ नहीं चलता.

- (झेंपते हुए) हें, हें, अच्छा ठीक है. मेरा दर्द यह है कि घर में मेरी कोई नहीं सुनता. मैं जो कहता हूं घरवाले ठीक उसके उलट करते हैं. घर में सारा दिन चिल्ल-पों मची रहती है.
- ये दर्द नहीं बिकेगा. दुकान में पहले ही ढेर लगा हुआ है इसका.
- फिर काहे की दुकान ! दर्द तो दर्द है.
- आप बोहनी के वक्त आए हैं. चलो आपका दर्द रख लेता हूं. परंतु अपनी बात पर कायम रहिएगा. इस पत्ते पर अपनी अनामिका उंगली रख दीजिए.
- यह क्या है ? इससे क्या होगा ?
- दर्द पारिजात के पत्ते पर सहेजा जाता है. और अनामिका में सारा दर्द बसा होता है.
- अच्छा, यह मेरे लिए नई बात है.
- जिंदगी में रोज कुछ नया होता है बस हम देख ही नहीं पाते. खैर, आप के दर्द का मोल क्या दूं ?
- आप बताओ, क्या विकल्प है ?
- (पारिजात का एक पत्ता आगे करते हुए) आप सन्नाटे का दर्द ले लीजिए. इस घर में कोई किसी से नहीं बोलता. घर का मालिक अभी परसों ही यह दर्द बेचकर गया है.
- क्या बात करते हैं ! चुप्पी ! ऐसा दर्द लेने के बाद तो मैं घर पहुंचते ही मर जाऊंगा....
- तो फिर इसे ले लें. यह उस आदमी का दर्द है जिसे शक है कि इसकी बीवी के पेट में किसी और का पाप पल रहा है.
- नही, कोई और ढंग का दर्द दिखाइए ना !
- मेरे भाई, दर्द का ढंग एक सा होता है. फर्क सिर्फ महसूस करने में है.
- फिर भी, कोई और दिखाइए ना !
- (कुछ सोच कर) चलिए ये ले जाइए. एक लेखक का दर्द है  जिसकी कहानी के सारे  किरदारों ने विद्रोह कर दिया है और उसकी कलम पकड़ कर बैठ गए हैं. यह तमाम उम्र चलने वाला अनूठा दर्द है.
- जनाब मेरी उम्र तो देखिए. इसका दर्द मैं कैसे संभाल पाऊंगा ?
- दर्द का उम्र से कोई लेना-देना नहीं होता साहब. फिर भी यूं करें इस बच्चे का दर्द ले जाएं जिसकी बिनब्याही मां उसे पैदा करते ही झाड़ियों में पटक गई थी....

- ( दुकान की सीढ़ियां चढ़ते नए ग्राहक से) आइए बहन जी, क्या सेवा करूं ?
- मेरा दर्द रख लीजिए. तीन तीन बेटों की मां हूं लेकिन कोई भी मुझे अपने साथ रखने को तैयार नहीं. इससे तो मैं बांझ ही भली थी.
- (पत्ते पर महिला का दर्द सहेजते हुए) आपको क्या दूं ?
- जो आप ठीक समझें.
- ठीक है. आप इसे ले लीजिए. तमाम कोशिशों के बावजूद ये महिला मां नहीं बन सकी है. आप बच्चों को रोती हैं ये बच्चों के लिए रोती है.
- आपका धन्यवाद. (दर्द का मोल समेटकर थके कदमों से जाते हुए).....

- हां तो भाई साहब ये अनाथ बच्चे वाला दर्द दे दूं ?
- नहीं, नहीं. इसे कैसे ढो पाऊंगा ? मेरी उम्र बची ही कितनी है.
- फिर इसे ले जाइए. यह एक ऑवरएज बेरोजगार का दर्द है जिसे कोई काम नहीं मिल पा रहा. डिग्रियों के साथ-साथ घर और सारा मोहल्ला चिढ़ाता है.
- नहीं, नहीं. कोई दूसरा दिखाइए.
- (इतने में एक नौजवान ग्राहक) भाईजान, सुना है आप दर्द खरीदते हैं. मुझे ब्लड कैंसर है और डॉक्टर्स ने हाथ खड़े कर दिए हैं. मैं जीना चाहता हूं.
- (अलमारी से पारिजात का एक छोटा पत्ता निकालते हुए) आप इसे लीजिए. दुनिया के रंग-ढंग देख इस आदमी के जीने की इच्छा मर चुकी है. लेकिन कमबख्त मौत है कि आती ही नहीं.
- हैं...., कमाल है, जीना नहीं चाहता.
- बिल्कुल नहीं, इसे रिश्ते-नातों ने गहरे दंश दिए हैं. बड़ा हिम्मतवाला आदमी है लेकिन आत्महत्या नहीं कर सकता.
- ठीक है, यही दे दीजिए.
- इस पत्ते पर अपनी अनामिका रखिए....

- (पहले ग्राहक से) हां तो भाई साहब, आपने कुछ तय किया क्या ?
- मुझे तो कंफ्यूज कर दिया आपने.
- कन्फ्यूजन भी एक किस्म का दर्द है जो हर आदमी लिए घूम रहा है.
- अच्छा, ये भी बिक जाता है क्या ?
- नहीं, कन्फ्यूजन के दर्द पर खुद ही सिकना पड़ता है.
- मुझे भी कोई राह सुझाइए ना !
- जनाब मैं दर्द का धंधा करता हूं. राह दिखाने के लिए बहुत सी दुकानें खुली हुई हैं.....

- (तभी दुकान में आए नए ग्राहक से) बताइए सर, क्या आदेश है ?
- कोई अच्छा सा दर्द दीजिए.
- पुराना दर्द साथ लेकर आए हैं क्या ?
- नहीं, मैं तो खरीदना चाहता हूं. सुना है दर्द के साथ जीने का मजा ही कुछ और है.
- दर्द सहेजने वाला दिल है क्या आपके पास ? वो पढ़ लीजिए 'हमारी दुकान में बिका हुआ माल वापस नहीं होता.'
- मुझे शर्त मंजूर है. आजकल चांदनी रातों में नींद नहीं आती.
- तो इस मासूम का दर्द ले जाइए. ये बच्चा दंगों में गुम हुए अपने अम्मी-अब्बू को आसमान के सितारों में ढूंढता रहता है.
- वैरी गुड, ये ठीक है. मुझे इसकी क्या कीमत चुकानी होगी ?
- (एक पत्ता आगे करते हुए) बस चांदनी रातों में नींद न आने का अपना दर्द छोड़ जाइए. अपनी अनामिका उंगली यहां टिकाइए.
- आपका शुक्रिया !
........

- चलो यार, अब मेरे दर्द का मोल भी चुका दो.
- (निराश होते हुए) दरअसल क्या है कि छोटे-मोटे दर्द का मोल चुकाना आसान नहीं होता. आपने देखा नहीं, बड़े-बड़े दर्द लिए ग्राहक आते हैं और आसानी से सौदा निपट जाता है.
- हां, वो तो देखा मैंने. परंतु दर्द तो मेरा भी बड़ा है.
- (दर्द को समेटते हुए) यह तो बाजार तय करता है. और बाजार के हिसाब से आप का दर्द बहुत छोटा है.
- (उत्सुकता से) वह उन डिबियों में क्या रखा है ?
- वे कुछ अलहदा किस्म के दर्द हैं. यूं समझ लीजिए कुछ महंगे हैं. आप के दर्द के बदले नहीं मिल सकते.
- अच्छा, क्या मैं उन्हें देख सकता हूं.
- धंधे का टाइम है साहब ! अब आपको क्या कहूं.
- नहीं नहीं, यदि आप परेशान होते हैं तो मैं फिर कभी आ जाऊंगा.
- फिर किसने देखा है ! और फिर तब भी परेशान तो मुझे ही होना पड़ेगा.
- (एक डिबिया उठाकर उसे पौंछते हुए) इसमें रोटी का दर्द है. जो बनाई तो गई थी लेकिन खाई नहीं जा सकी. कितने अरमानों से इस रोटी को भूख मिटाने के लिए बेला गया था. बदकिस्मती देखिए वक्त की मार ने कोर तोड़ने वाले हाथों को पहले ही तोड़ दिया.
- ओ हो, कितना दु:खद है.
- (दूसरी डिबिया दिखाकर) इसमें उस शिक्षक का दर्द है जिसने बच्चों को ताउम्र देशभक्ति और ईमानदारी का पाठ पढ़ाया था लेकिन आज उसके विद्यार्थी भ्रष्टाचार की दीमक बन अपने ही देश को लूटने में लगे हैं. बेचारे गुरुजी इस दुर्दशा पर बहुत रोते हैं.
- कमाल है भई !
- वो जो बड़ी डिबिया देख रहे हैं. इसमें एक मां का दर्द है जो सबसे गहरा है. कुछ भटके हुए लोगों ने उसकी आंखों के सामने उसके पति और दो नौजवान बेटों का कत्ल कर दिया. उसके बाद सिरफिरों ने वहीं उसकी तेरह साल की बेटी के साथ निर्ममता से सामूहिक बलात्कार किया फिर गला दबाकर हत्या कर दी.'
- हे राम, इतना दर्द ! सुनकर ही रूह कांप जाती है. क्या यह औरत जिंदा है ?
- नहीं, अब सिर्फ जिंदा लाश है. अक्सर आती है मेरे पास, अपने दर्द का मोल लेने के लिए. मुझसे इसका मूल्य चुकाया ही नहीं जा रहा. खैर,...... कभी तो चुका ही दूंगा. दर्द की कमी थोड़े ही है !

- (गहरी सोच में डूबे हुए) माफी चाहता हूं भाई साहब. आप मेरा ही दर्द वापस कर दीजिए. मुझे नहीं बेचना है.
- क्यों ? क्या हुआ ?, कहो तो कुछ और दर्द दिखा दूं ?
- नहीं, अब हिम्मत नहीं बची है. फिर कभी आता हूं ना ! कोई अच्छा सा दर्द लेकर.
- मैंने आपसे कहा था अपनी बात पर कायम रहिएगा. दर्द दर्द होता है.
- हें हें हें, आपने भी तो कहा था कि मैं दुनियावी आदमी हूं. चूक हो ही जाती है.
- मर्जी है आपकी, आखिर दर्द है आपका !
- शुक्रिया !

                 -डॉ. हरिमोहन सारस्वत 'रूंंख'

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